छूते रहे वो दिल मेरा गज़ल की आग से
जलते रहे हम रातभर शायर की बात से
कहने लगे कि उनकी नज़र यूँ उदास है
पलकों में रखे अश्क न गिर पाते आँख से
जाने की जिद पकड़ लिए वो आधी रात को
फिर रूक गए अचानक वो अपने आप से
यूँ रोज ही जवाँ रहे महफिल इसी तरह
और आप गजल गाएँ लबों के साज से
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